उछल के छू लेता जिसे
वो आसमा नहीं मिला॥
मिला तो , बहुत दूर है जो
बिना चाँद, तारों के बिना ॥
धूप मिली धूल मिली
पतझड़ मिला कांटे मिले॥
राह कट जाती जिसमे थोड़ी
ऐसा कोई मौसम न मिला॥
बोझ मिला ज़िन्दगी का कहीं
कहीं मिले सौदगर अरमानो के॥
मिला जो अपना कोई कहीं
तो वही कही चौराहा भी मिला॥
कहीं मिली मौज गुनाहों की
कहीं समुन्दर खुद ही प्यासा मिला॥
मिली जो कश्ती तो टूटी हुई
पाल बिना पतवार बिना॥
क्यूँ हवा खुलकर मुझसे न मिली
क्यूँ कहीं मुझे कोई गुल न दिखा॥
मिला बाग़ अंधियारों का
बात्ती गर मिली तो दिया न मिला ॥
गिर गया तो सहारा न मिला
बिखर गया फिर बन न सका॥
लाठी मिली जो कभी संभलने के लिए
हाथों के बिना, ज़मीन के बिना...............................................
Beparwah..
कहीं मिली मौज गुनाहों की
ReplyDeleteकहीं समुन्दर खुद ही प्यासा मिला॥
मिली जो कश्ती तो टूटी हुई
पाल बिना पतवार बिना॥
यही होता है ....जो हमें चाहिए वो छोड़ सब मिलता है..बिना पतवार ही जीवन नैया को खेना पड़ता है