March 31, 2010

तो फिर ...शुक्रिया..


कोई गर तोड़ दे दिल प्यार से तो फिर ...शुक्रिया
दर्द गर मिल जाए यार से तो फिर ...शुक्रिया॥

हिना के रंग सा कोई रिश्ता तो बने....
कोई खुशबू का चमन...बाग़ कोई, गुलिस्ता मिले...
कोई दुल्हन सी सजी सेज बना दे मेरी...
फिर मुकर जाए गर इज़हार से तो फिर... शुक्रिया॥
कोई गर तोड़ दे दिल प्यार से तो फिर... शुक्रिया॥

कर दे कोई इतनी मेहरबानी बस कुच्छ और नहीं...
छोड़ जाए एक निशानी ..बस कुच्छ और नहीं...
बस एक मीठी सी हंसी...और एक ज़ालिम सी अदा
एक खाली सा लिफाफा होठों से छू के..........................
एक अपनी आँख का पानी...बस कुच्छ और नहीं...
फिर गर रुख मोड़ ले दीदार से तो फिर...शुक्रिया॥
कोई गर तोड़ दे दिल प्यार से तो फिर...शुक्रिया

हम समेटे हैं हरेक रात-इए -हिज्र सीने में...
बस एक रात मिले ..इज़हार-इए-मोहब्बत के लिए
वो निगाहों से बस छू लें तो बस इतना ही काफी
अपनी जुल्फों को मेरे साए पे बिखेरे हुए
कोई समेट तो मेरा अक्स अपनी बाहों में.................
फिर गर जीत जाएँ मेरी हार से तो फिर...शुक्रिया॥
कोई गर तोड़ दे दिल प्यार से तो फिर ...शुक्रिया॥

कोई गर तोड़ दे दिल प्यार से तो फिर ...शुक्रिया ॥
दर्द गर मिल जाए यार से तो फिर ...शुक्रिया॥



Beparwah..



March 20, 2010

जो नजर चुरा कर चले gaye


गिर गए जो थोड़ी पी के शराब


तो लोग दीवाना कहने लगे


उनसे भी तो पूछे कोई ज़रा


जो नज़र चुरा कर चले गए..



हमने तो सुना था मैखाने को...


बस ग़ालिब -मिर्ज़ा की गजलों में


कसूर जो उनका किसको दिखे


जो राह बताकर चले गए...



आये थे वो मिलने सच कहता हूँ...


आये थे हाथों में फूल लिए॥


रखे दिए फूल फिर असलाम किया


जब उठा ज़नाजा सब रोये...


वो कंगन खनका कर चले गए......




Beparwah...

March 19, 2010


वो आधा अधूरा सा दिन

वो सिमटी सिमटी सी रात॥

कह सकते थें तुम तभी

जो गर इतनी सी थी बात॥


हमे तो याद भी न रहता अब तक

अब तक तो ज़िन्दगी फिर चल पड़ती॥

अब तक तो नींद आ गयी होती रातों में

अब तक तो कश्ती किसी मंजिल को निकल पड़ती॥

अब वहीँ ठहर कर रह गयी है

वो दो पल की मुलाक़ात ॥


अब भी जीना है पर अब वो बात नहीं है

दौड़ना है मगर चल पाने के हालात नहीं हैं॥

कोई बात नहीं है,अब तो कोई बात नहीं कहनी,

कहने को कोई बात नहीं है॥

अब तो मुह भी छुपाना है आँखें भी छुपानी हैं

क्या दिखाऊंगा किसी को अपने प्यार भरे ज़ज्बात .........................


Beparwah..


उछल के छू लेता जिसे

वो आसमा नहीं मिला॥

मिला तो , बहुत दूर है जो

बिना चाँद, तारों के बिना ॥


धूप मिली धूल मिली

पतझड़ मिला कांटे मिले॥

राह कट जाती जिसमे थोड़ी

ऐसा कोई मौसम न मिला॥


बोझ मिला ज़िन्दगी का कहीं

कहीं मिले सौदगर अरमानो के॥

मिला जो अपना कोई कहीं

तो वही कही चौराहा भी मिला॥


कहीं मिली मौज गुनाहों की

कहीं समुन्दर खुद ही प्यासा मिला॥

मिली जो कश्ती तो टूटी हुई

पाल बिना पतवार बिना॥


क्यूँ हवा खुलकर मुझसे न मिली

क्यूँ कहीं मुझे कोई गुल न दिखा॥

मिला बाग़ अंधियारों का

बात्ती गर मिली तो दिया न मिला ॥


गिर गया तो सहारा न मिला

बिखर गया फिर बन न सका॥

लाठी मिली जो कभी संभलने के लिए

हाथों के बिना, ज़मीन के बिना...............................................


Beparwah..

मुस्कुरा दो जरा अब तो


कि हसरत आज पूरी हो चली है


अपनों के करीब जा रहे हो


हम गैरों से दूरी हो चली है




कहे देते हैं हम न रोकेंगे तुम्हें


भले अश्कों को थाम लेंगे


न आज के बाद पुकारेंगे तुम्हें


न किसी नज़्म में तेरा नाम लेंगे


तुम्हें भी मंज़ूर यही है


वक़्त कि भी ये मंज़ूरी हो चली है




मुस्कुरा दो ज़रा अब तो


कि आज हसरत पूरी हो चली हे




हम तो न मिला पायेंगे अब नज़र आईने स कभी


पास तुम्हारे तो कोई नज़र होगी नज़र मिलाने को


तुम्हें तोहफे मिल गयी है ख़ुशी ज़माने की


मेरे पास तो वज़ह भी नहीं अश्क बहाने को


मेरी मंजिलें पूरी हो गयी हैं


राहें अधूरी हो चली हैं......




मुस्कुरा दो ज़रा अब तो


कि हसरत पूरी हो चली है......




Beparwah..





March 18, 2010

लम्हा लम्हा


ये zindagi अब जा के कुछ असर कर रही है...
लम्हा-लम्हा ही सही , मगर मर रही है..

खुद भी बदल के देखा,रस्ते बदल के देखे..
मगर देखो अब manjilein बदल रही हैं ...

थक गया था musaafir कड़ी धूप में चलकर...
धीरे-धीरे अब शुकून की शाम ढल रही है..

खूब उठी थी एक बार chingaariyan रुश्वाइयों की..
अब शमा एक ओर pighal रही है..

जो बातें likkhi थी kishmat की kitaabon में..
वो हर बात आज कैसे बदल रही है..

ये zindagi अब जा के कुछ असर कर रही है...
लम्हा-लम्हा ही सही , मगर मर रही है..

Beparwah..

कहना तो नहीं था तुमसे
पर अब चुप रह न सका..
कल एक बात कहनी थी तुमसे ...
मगर कह न सका

न जाने क्यूँ मन उदास है..
क्यूँ चुप्प-चुप्प सा हूँ आज
एक अश्क रखा थ पलकों पे ..
वो बह न सका..

कल एक बात कहनी थी तुमसे
मगर कह न सका

क्यूँ न जाने सोचता हूँ अब..
क्यूँ मुड़ गया उस मोड़ से
क्यूँ अपने dil के हालात..
क्यूँ खुद ही समझ न सका

कल एक बात कहनी थी तुमसे
मगर कह न सका

क्यूँ भागता रहा खुद से..
क्यूँ ढूंढता रहा खुद को
क्यूँ तोड़ दी हर डोर मैंने उम्मीदगी की...
क्यूँ kisi riste के धागे में उलझ न सका

कल एक बात कहनी थी तुमसे
मगर कह न सका
मगर कह न सका....

Beparwah..

cheers with broken heart...


आज फिर महफ़िल सजी है मेरी तन्हाइयों की...
आज फिर तेरे नाम से पैमाना मशहूर हुआ है
आज फिर न जाने क्यूँ तेरी याद आ रही है..
आज फिर न जाने क्यूँ ये जाम नासूर हुआ है..
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लौट आओ तुम की यूँ अब जिया नहीं जाता
ये जाम जलाता है अब पिया नहीं जाता

ये फानूस न गिर जाए कहीं डर लगता है
ये शराब न बिखर जाए कहीं डर लगता है
न टूट जाए मेरा दिल कहीं पैमाने की तरह
ये होश न संभल जाए कहीं डर लगता है
की अब तो मुझे होश भी नहीं आता..

लौट आओ तुम की अब यूँ जिया नहीं जाता
ये जाम जलाता है अब पिया नहीं जाता

साकी से यारी झूठी निकली
ये सारी दुनियादारी झूठी निकली
fir मय को दोस्त बनाया मैंने
पर दो पल की खुमारी झूठी निकली
ये झूठ का जाम अब पिया नहीं जाता...


लौट आओ तुम की यूँ अब जिया नहीं जाता
ये जाम जलाता है अब पिया नहीं जाता

शराब है रगों में
आँखों में शराब है
सांसें नशीली हैं
बातों में शराब है
होश रहे भी तो कैसे मुझको
मेरे ज़ज्बातों में शराब है
जुड़ गया है किसी हमसफ़र जैसा नाता....


लौट आओ तुम की अब यूँ जिया नहीं जाता
ये जाम जलाता है अब पिया नहीं जाता

जब जाम लगाता हूँ लबों से
तो तेरी हंसी याद आती है
जब आँखों में खुमारी आती है
कोई पर्दानशीं याद आती है
जब भूल जाता हूँ सब कुछ नशे में
तो बस...मयकशी याद आती है
अब तो बिन पिए कुछ याद भी नहीं आता....

लौट आओ तुम की यूँ अब जिया नहीं जाता
ये जाम जलाता है अब पिया नहीं जाता

हर दिल हर पल मैखाने में
मैं तो जिया हूँ मैखाने में
कहते हैं छोटा जाम मगर
मैं तो डूब गया पैमाने में
ये जाम नहीं है सागर है.......
पर कहीं साहिल क्यूँ नहीं आता...


लौट आओ तुम की यूँ अब जिया नहीं जाता
ये जाम जलाता है अब पिया नहीं जाता

मौसम की अदा शबाब सी लगी
जब बारिश की बूँदें शराब सी लगी
जब थमा दौर तो आइना देखा मैंने
अपनी सूरत भी हमे आप जनाब सी लगी
ये जादूभरा मौसम फिर क्यूँ नहीं आता...

लौट आओ तुम की यूँ अब जिया नहीं जाता
ये जाम जलाता है अब पिया नहीं जाता


मैंने जिस रोज़ तेरे हाथों पे गुलाब रक्खा था
और तुमने मेरे होठों पे अपना शबाब रक्खा था
इतना झूमा था मैं नशे में उस रोज़ क्या कहूँ..
मैंने तो तेरे हुस्न का नाम शराब रक्खा था
की इस पानी सी शराब में, जीने का मज़ा नहीं आता...

लौट आओ तुम की यूँ अब जिया नहीं जाता
ये जाम जलाता है अब पिया नहीं जाता


mehfil जब जामों का दौर चलाती है
मेरी मुश्किलें तब और भी बढ़ जाती हैं
जी करता है तोड़ दूँ पैमाना..मगर
याद फिर आता है, ये कई दिलजलों का साथी है
मैं नकारा खुद ही टूट क्यूँ नहीं जाता...

लौट आओ तुम की यूँ अब जिया नहीं जाता
ये जाम जलाता है अब पिया नहीं जाता


शमा जलती है तो शराब पीता हूँ
जब पिघलती है तो शराब पीता हूँ
चांदनी को मिलाता हूँ रात भर शराब में
जब रात ढलती है तो शराब पीता हूँ
शराब..शराब..शराब..शराब..और शराब
ये जाम क्यूँ बन गया है मेरा भाग्यविधाता...


लौट आओ तुम की यूँ अब जिया नहीं जाता
ये जाम जलाता है अब पिया नहीं जाता

milte हैं बैठते हैं महफ़िल सजाते हैं
ये दुनिया वाले न जाने क्यूँ मैखाने बनाते हैं
देते हैं बद दुआ फिर दिलजले मयकशों को
और खुद को मोहब्बत का मशीहा बताते हैं
क्या मुझमे दिल नहीं मैं भी तो शराबी हूँ
क्या मयकशी में मोहब्बत का मज़ा नहीं आता...

लौट औ तुम की यूँ अब जिया नहीं जाता
ये जाम जलाता है अब पिया नहीं जाता


आदत हो चुकी है मेरी मयखाने को
पहचान हो चुकी है मेरी पैमाने को
जब भी जाता हूँ साकी का सलाम मिलता है
और दुल्हन सा सजा के रखते हैं शराबखाने को
ये मंडप नहीं है...ये मेरा जनाज़ा है
पर आशिकों को मैखाने में दफ़न तो नहीं किया जाता...

लौट आओ तुम की यूँ अब जिया नहीं जाता
ये जाम जलाता है अब पिया नहीं जाता


जब कोई मयकश अपनी दिलरुबा का नाम लेता है
मेरा दिल दौड़ कर अपनी यादों को थाम लेता है
हर दिलजला खुदा मेरा....मैं दिलजलों का खुदा
हर मय के जले को बंद सलाम देता है
की मैखाने में दिल जलाने कोई ख़ुशी से तो नहीं आता....


लौट आओ तुम की यूँ अब जिया नहीं जाता
ये जाम जलाता है अब पिया नहीं जाता




Beparwah..

Introduction


नमस्कार दोस्तों ,
मैं Vijay Aggarwal
मैं कोई कवि नहीं जो चाँद तारो के पार जाकर शब्दों को खींच लाता है , ओर न ही मैं कोई शायर हूँ जो किसी गम में पेश होकर कुछ कहता है तो वो बात शायरी बन कर निकलती है॥
और....
ऐसा भी नहीं कभी किसी को चाहा नहीं मैंने ...
अवि रुसवा न हो जाएँ यही सोच कर मोहब्बत छोड़ दी मैंने।
एक मीठा सा दर्द रह गया बस बाकी और कुच्छ गिला न रहा
पर ऐसा भी नहीं की उनसे शिकायत छोड़ दी मैंने
...

मेरा ये ब्लॉग चंद पंक्तियाँ समेटे हुए है ..जिसकी स्याही कभी दिल देता है और कभी हालात ...