March 18, 2010

लम्हा लम्हा


ये zindagi अब जा के कुछ असर कर रही है...
लम्हा-लम्हा ही सही , मगर मर रही है..

खुद भी बदल के देखा,रस्ते बदल के देखे..
मगर देखो अब manjilein बदल रही हैं ...

थक गया था musaafir कड़ी धूप में चलकर...
धीरे-धीरे अब शुकून की शाम ढल रही है..

खूब उठी थी एक बार chingaariyan रुश्वाइयों की..
अब शमा एक ओर pighal रही है..

जो बातें likkhi थी kishmat की kitaabon में..
वो हर बात आज कैसे बदल रही है..

ये zindagi अब जा के कुछ असर कर रही है...
लम्हा-लम्हा ही सही , मगर मर रही है..

Beparwah..

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