April 6, 2010


तेरी महफ़िल में किसी नूर की कमी नहीं थी ...
मेरे खातिर बस वहां थोड़ी सी ज़मीं नहीं थी

देख सकता तेरे दिल में किसी गैर कि सूरत ...
मेरी आँखों में ऐसी रोशनी नहीं थी

कह पाया हो उनसे कोई बात आँखों-आँखों में...
ऐसी कोई बात मेरे दिल में रही नहीं थी

दबा रक्खा था बोझ कितना अपनी हसरतों का मैंने...
ये कहना की ख़त में ये बात लिक्खी नहीं थी

कैसी किस्मत है की लौट आया हूँ उस मोड़ से मैं...
सामने मंजिल थी..और कोई राह बची नहीं थी


Beparwah..

उनके हक में खुदा से एक दुआ हम करें..




दिल
जो आया किसी पे तो क्या हम करें...
उसके हक में खुदा से एक, दुआ हम करें॥

दिल जो आया किसी पे तो क्या हम करें...
उसके हक में खुदा से एक, दुआ हम करें

कैसे
कह दे मेहरबां से यूँ हाल-ऐ-दिल...
कैसे महबूब से अपने, इल्तिजां हम करें

दिल जो आया किसी पे तो क्या हम करें...
उसके हक में खुदा से एक, दुआ हम करें

आज कल है ज़माना बड़ा मतलबी....
कैसा
हो गर दोस्तों से कम ,मिला हम करें

दिल
जो आया किसी पे तो क्या हम करें...
उसके हक में खुदा से एक, दुआ हम करें

वो तो बेपरवा हैं, वो तो मगरूर हैं,पर वो हैं तो सनम...
उनकी आदत का कैसे..गिला हम करें

दिल जो आया किसी पे तो क्या हम करें...
उसके
हक में खुदा से एक दुआ हम करें

मयकशी
छोड़ दी , दिल्लगी छोड़ दी....
अब 'तड़प' से गुजारिश है, तड़पना कम करे

दिल
जो आया किसी पे तो क्या हम करें...
उसके
हक में खुदा से एक दुआ हम करें


Beparwah..

बात जब गिर ही गयी है आपकी नज़रों में...
हमे भी एक बूँद पलकों से गिरा क्यूँ नहीं देते

क्यूँ खामोश से ख़त लगा बैठे हो अपने दिल से...
इन तन्हाइयों को तुम भुला क्यूँ नहीं देते

आप तो शर्मिंदा हैं और ही हम जिंदा हैं...
याद को मेरी तुम जला क्यूँ नहीं देते

भेज देते हो गम--तन्हाई मेरी जानिब... (तरफ)
बाँध के शिकवा -गिला भिजवा क्यूँ नहीं देते

क्यूँ बढ़ाते हो मेरा भी दर्द फिर जाम पिलाते हो...
अपने अश्क हलाहल एक बार पिला क्यूँ नहीं देते



Beparwah..

April 2, 2010

इज़हार का तिल....


हसी लबों पे तेरे छोटा सा इकरार का तिल...
यूँ छुपाओ न रख के ऊँगली, ये इज़हार का तिल॥
नज़र उठाओ तो ज़रा देखूं है कौन नज़रों में...
नाम तो मेरा कह रहा है ये तेरे रुखसार का तिल॥



हसी लबों पे तेरे छोटा सा इकरार का तिल...

यूँ छुपाओ न रख के ऊँगली, ये इज़हार का तिल॥



ज़रा करीब तो आओ की हम भी देखें ज़रा ...
क्यूँ कहते हैं तेरे रुख को गुलाब लोग सभी ॥
चूम लूँ सूर्ख तेरे होठों की हया होठों से ...
आ छुपा लूँ अपने होठों में ये इनकार का तिल ॥



हसी लबों पे तेरे छोटा सा इकरार का तिल...

यूँ छुपाओ न रख के ऊँगली, ये इज़हार का तिल॥



ये निगाहें , ये अदाएं , और ये शोख बदन ...
उसपे किसी हिजाब* सी तेरे रुख पे फैली ये लटें ॥
हम तो घायल हैं खुद ही तेरी नज़रों से ...
मेरी नज़रों से बचाता है तुम्हे , मेरे दिलदार का तिल ॥



हसी लबों पे तेरे छोटा सा इकरार का तिल...

यूँ छुपाओ न रख के ऊँगली, ये इज़हार का तिल॥



Beparwah..



(*हिजाब= पर्दा )

दीवारें ढूंढ रही हैं वही परछाईयाँ उस रात की...
जो देखी थी दो जिस्मो की तन्हाईयाँ उस रात की॥



यूँ ही चुप्प चाप निगाहें मिलती रही निगाहों से...

बाहें सिमट गयी थी हया से लिपट बाहों से॥

बातों बातों में बीती रात बिना बात, किसी...

आज भी माथे पे सजी हैं रुस्वाइयाँ उस रात की॥

दीवारें ढूंढ रही हैं वही परछाइयां उस रात की॥


दीवारें ढूंढ रही हैं वही परछाईयाँ उस रात की...
जो देखी थी दो जिस्मो की तन्हाईयाँ उस रात की॥



आइना अब भी वही अक्स दिखाता है मगर...

आइना अब वो पहले सा वफादार नहीं॥

आज भी रात वही चाँद रात है मगर.....

हसरतें इस चाँद के नूर की तलबगार नहीं॥

वो कमसिन सी मोहब्बत ,वो अदा ,वो वफ़ा ,वो इरादे...

हर शब्*बढ़ रही हैं रानाईयाँ*उस रात की॥

दीवारें ढूंढ रही हैं वही परछाइयां उस रात की॥


दीवारें ढूंढ रही हैं वही परछाईयाँ उस रात की...
जो देखी थी दो जिस्मो की तन्हाईयाँ उस रात की॥



Beparwah..

(शब्=शाम *

रानाइयां = खूबसूरती *)




April 1, 2010


न अश्क गिराओ की सैलाब आ जाते हैं ...

किनारे टूटने लगते हैं रेत बिखर जाती है॥

तड़प उठते हैं आपके चाहने वाले...

हमे भी आपकी फिक्र आती है॥


सूखे होठों पे ज़रा भीगी सी हंसी आने दो...

एक नज़र देख के चाहे पलकों को गिर जाने दो...

थोड़ी सी मासूमियत पे गर ये ज़रा सी अदा हो जाए ,

तो आपके हुस्न पे और नर्गिशी आती है॥


तड़प उठते हैं आपके चाहने वाले...
हमे भी आपकी फिक्र आती है॥


अपने होठों के गर्म हवा से दिया न बुझाना..

गर नींद न आये तो बस ये जान जाना...

जाग रहे हैं तुम्हारे आशिक हर शहर में...

हम क्या कहें, हमे भी नींद कहाँ आती है॥


तड़प उठते हैं आपके चाहने वाले...
हमे भी आपकी फिक्र आती है॥


कहते हैं गर लोग तो फिर कहने दो...

बात इतनी सी है बस..इस बात को तो रहने दो...

हमसे न पूछो की हम तो अब तक चुप हैं....

पर ये मोहब्बत की मुश्क * है, ये कहाँ छुप पाती है ..


तड़प उठते हैं आपके चाहने वाले...
हमे भी आपकी फिक्र आती है॥


न अश्क गिराओ की सैलाब आ जाते हैं ...
किनारे टूटने लगते हैं रेत बिखर जाती है॥
तड़प उठते हैं आपके चाहने वाले...
हमे भी आपकी फिक्र आती है॥


Beparwah..


मुश्क = खुशबू