शौक-ऐ-हुस्न मैं इस क़दर रखता हूँ...
की भरे पैमाने पे टेढ़ी सी नज़र रखता हूँ
कोई जो पूछे राज मेरी खुश-तबियत का मुझसे..
बस हर वक़्त मयकशी का हल्का सा असर रखता हूँ॥
________________________________________________ कर रहा हूँ तसब्बुर जाम का॥कर रहा हूँ मैं तसब्बुर जाम का...
मालामाल हूँ अब मैं
बन्दा बे दाम का......
कर रहा हूँ मैं तसब्बुर जाम का॥
कोई न रोके मुझे कोई न टोके मुझे...
न कोई मुझसे करे अब दिल्लगी॥
मैं तो तनहा बज़्म हूँ हर शाम का ॥
कर रहा हूँ मैं तसब्बुर जाम का...
मंदिर से रस्ता मोड़ के...
मस्जिद से नाता तोड़ के....
चूमता हूँ मैक़दा....
सारे नाते छोड़ के ॥
क्यूँ भला अब नाम लूँ मैं....
सबके अल्लाह राम का॥
कर रहा हूँ मैं तसब्बुर जाम का...
हर शौक मेरा अब यहाँ है दोस्तों...
इसमें मेरा दोष कहाँ है दोस्तों॥
तुम भी अब होश में लडखडाना छोड़ दो...
आओ महफ़िल अब जवान है दोस्तों...
क्यूँ फिकर करते हो तुम अंजाम का...
कर रहा हूँ मैं तसब्बुर जाम का...
BEPARWAH...