April 6, 2010


तेरी महफ़िल में किसी नूर की कमी नहीं थी ...
मेरे खातिर बस वहां थोड़ी सी ज़मीं नहीं थी

देख सकता तेरे दिल में किसी गैर कि सूरत ...
मेरी आँखों में ऐसी रोशनी नहीं थी

कह पाया हो उनसे कोई बात आँखों-आँखों में...
ऐसी कोई बात मेरे दिल में रही नहीं थी

दबा रक्खा था बोझ कितना अपनी हसरतों का मैंने...
ये कहना की ख़त में ये बात लिक्खी नहीं थी

कैसी किस्मत है की लौट आया हूँ उस मोड़ से मैं...
सामने मंजिल थी..और कोई राह बची नहीं थी


Beparwah..

1 comment:

  1. आपका ब्लाग अनोखा है,
    बधाइयां स्वीकारिये अपके ब्लाग से एक तस्वीर का प्रयोग किया है http://voi-2.blogspot.com/2010/05/blog-post_31.html कृपया सहमति असहमत से अवगत कराइये
    सादर
    आपका ही मुकुल

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