April 2, 2010

इज़हार का तिल....


हसी लबों पे तेरे छोटा सा इकरार का तिल...
यूँ छुपाओ न रख के ऊँगली, ये इज़हार का तिल॥
नज़र उठाओ तो ज़रा देखूं है कौन नज़रों में...
नाम तो मेरा कह रहा है ये तेरे रुखसार का तिल॥



हसी लबों पे तेरे छोटा सा इकरार का तिल...

यूँ छुपाओ न रख के ऊँगली, ये इज़हार का तिल॥



ज़रा करीब तो आओ की हम भी देखें ज़रा ...
क्यूँ कहते हैं तेरे रुख को गुलाब लोग सभी ॥
चूम लूँ सूर्ख तेरे होठों की हया होठों से ...
आ छुपा लूँ अपने होठों में ये इनकार का तिल ॥



हसी लबों पे तेरे छोटा सा इकरार का तिल...

यूँ छुपाओ न रख के ऊँगली, ये इज़हार का तिल॥



ये निगाहें , ये अदाएं , और ये शोख बदन ...
उसपे किसी हिजाब* सी तेरे रुख पे फैली ये लटें ॥
हम तो घायल हैं खुद ही तेरी नज़रों से ...
मेरी नज़रों से बचाता है तुम्हे , मेरे दिलदार का तिल ॥



हसी लबों पे तेरे छोटा सा इकरार का तिल...

यूँ छुपाओ न रख के ऊँगली, ये इज़हार का तिल॥



Beparwah..



(*हिजाब= पर्दा )

1 comment:

  1. आपकी इस कृति का उपयोग कर रहा हूं
    आपत्ति हो तो अवश्य बतायें
    सादर
    गिरीश बिल्लोरे मुकुल
    girishbillore@gmail.com

    ReplyDelete