दीवारें ढूंढ रही हैं वही परछाईयाँ उस रात की...
जो देखी थी दो जिस्मो की तन्हाईयाँ उस रात की॥
यूँ ही चुप्प चाप निगाहें मिलती रही निगाहों से...
बाहें सिमट गयी थी हया से लिपट बाहों से॥
बातों बातों में बीती रात बिना बात, किसी...
आज भी माथे पे सजी हैं रुस्वाइयाँ उस रात की॥
दीवारें ढूंढ रही हैं वही परछाइयां उस रात की॥
दीवारें ढूंढ रही हैं वही परछाईयाँ उस रात की...
जो देखी थी दो जिस्मो की तन्हाईयाँ उस रात की॥
जो देखी थी दो जिस्मो की तन्हाईयाँ उस रात की॥
आइना अब भी वही अक्स दिखाता है मगर...
आइना अब वो पहले सा वफादार नहीं॥
आज भी रात वही चाँद रात है मगर.....
हसरतें इस चाँद के नूर की तलबगार नहीं॥
वो कमसिन सी मोहब्बत ,वो अदा ,वो वफ़ा ,वो इरादे...
हर शब्*बढ़ रही हैं रानाईयाँ*उस रात की॥
दीवारें ढूंढ रही हैं वही परछाइयां उस रात की॥
दीवारें ढूंढ रही हैं वही परछाईयाँ उस रात की...
जो देखी थी दो जिस्मो की तन्हाईयाँ उस रात की॥
Beparwah..
(शब्=शाम *
रानाइयां = खूबसूरती *)
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