April 6, 2010


बात जब गिर ही गयी है आपकी नज़रों में...
हमे भी एक बूँद पलकों से गिरा क्यूँ नहीं देते

क्यूँ खामोश से ख़त लगा बैठे हो अपने दिल से...
इन तन्हाइयों को तुम भुला क्यूँ नहीं देते

आप तो शर्मिंदा हैं और ही हम जिंदा हैं...
याद को मेरी तुम जला क्यूँ नहीं देते

भेज देते हो गम--तन्हाई मेरी जानिब... (तरफ)
बाँध के शिकवा -गिला भिजवा क्यूँ नहीं देते

क्यूँ बढ़ाते हो मेरा भी दर्द फिर जाम पिलाते हो...
अपने अश्क हलाहल एक बार पिला क्यूँ नहीं देते



Beparwah..

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