April 1, 2010


न अश्क गिराओ की सैलाब आ जाते हैं ...

किनारे टूटने लगते हैं रेत बिखर जाती है॥

तड़प उठते हैं आपके चाहने वाले...

हमे भी आपकी फिक्र आती है॥


सूखे होठों पे ज़रा भीगी सी हंसी आने दो...

एक नज़र देख के चाहे पलकों को गिर जाने दो...

थोड़ी सी मासूमियत पे गर ये ज़रा सी अदा हो जाए ,

तो आपके हुस्न पे और नर्गिशी आती है॥


तड़प उठते हैं आपके चाहने वाले...
हमे भी आपकी फिक्र आती है॥


अपने होठों के गर्म हवा से दिया न बुझाना..

गर नींद न आये तो बस ये जान जाना...

जाग रहे हैं तुम्हारे आशिक हर शहर में...

हम क्या कहें, हमे भी नींद कहाँ आती है॥


तड़प उठते हैं आपके चाहने वाले...
हमे भी आपकी फिक्र आती है॥


कहते हैं गर लोग तो फिर कहने दो...

बात इतनी सी है बस..इस बात को तो रहने दो...

हमसे न पूछो की हम तो अब तक चुप हैं....

पर ये मोहब्बत की मुश्क * है, ये कहाँ छुप पाती है ..


तड़प उठते हैं आपके चाहने वाले...
हमे भी आपकी फिक्र आती है॥


न अश्क गिराओ की सैलाब आ जाते हैं ...
किनारे टूटने लगते हैं रेत बिखर जाती है॥
तड़प उठते हैं आपके चाहने वाले...
हमे भी आपकी फिक्र आती है॥


Beparwah..


मुश्क = खुशबू

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