उतरा न कोई आँख में ..तो अश्क उतर गए..
इसी तरह न जाने कितने मौसम गुज़र गए !!
बिखरे न जाने किस अदा से ख्वाब समूचे मेरे ...
टुकड़े भी न मिले ,न जाने किधर-किधर गए !!
एक दर्द जो मिला , मिला सुकूं मुझ बेदर्द को..
वादा फरोश दोस्त जब वादे से मुकर गए ...!!
लम्हा न कोई छूट जाए , जिसमे दाग न लगे ...
दामन सफ़ेद ले के हम , उनके शहर गए..!!
क़त्ल कर के मेरा ..मेरा रकीब भी रो पड़ा..
चलो ऐसे ही सही मगर अब ,हम तो गुज़र गए !!!!
विजय अग्रवाल 'बेपरवाह'
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