June 23, 2011

वादा फरोश दोस्त जब वादे से मुकर गए ...!!

उतरा न कोई आँख में ..तो अश्क उतर गए..

इसी तरह न जाने कितने मौसम गुज़र गए !!

बिखरे न जाने किस अदा से ख्वाब समूचे मेरे ...

टुकड़े भी न मिले ,न जाने किधर-किधर गए !!

एक दर्द जो मिला , मिला सुकूं मुझ बेदर्द को..

वादा फरोश दोस्त जब वादे से मुकर गए ...!!

लम्हा न कोई छूट जाए , जिसमे दाग न लगे ...

दामन सफ़ेद ले के हम , उनके शहर गए..!!

क़त्ल कर के मेरा ..मेरा रकीब भी रो पड़ा..

चलो ऐसे ही सही मगर अब ,हम तो गुज़र गए !!!!

विजय अग्रवाल 'बेपरवाह'

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