June 23, 2011

कलम बदल के खंज़र हो गयी ..

मेरी जिंदगी कुछ लम्हात और गुज़र हो गयी ..

अफ़सोस बस ये है के आपको भी खबर हो गयी !!

एक हिस्सा कल छुप गया था चाँद का आपसे ..

तो मेरी खिड़की की तरफ आपकी नज़र हो गयी !!

हलख तक न पंहुचा था निवाला अभी तो ...

और एक भूखे गरीब की आँखें तर हो गयी !!

टूटा था एक तारा ख़ास मेरी दुआ के लिए ...

वो दुआ भी खौफ -ए-हिज्र में आपके सर हो गयी !!

जहाँ आती थी सौंधी खुसबू चोमासे भर ..

नए दौर आया , मेरे आँगन की वो मिटटी पत्थर हो गयी !!

आइना तोड़ के किया एक शौख पूरा टूट जाने का ..

वहां वहां से खून ' निकला जहाँ से परछाई तितर बितर हो गयी !!

खून से लिखने लगी ज़िन्दगी के कयाम ..

कलम न जाने कैसे बदल के खंजर हो गयी .!!


Vijay Aggarwal 'Beparwah'

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