
तेरी महफ़िल में किसी नूर की कमी नहीं थी ...
मेरे खातिर बस वहां थोड़ी सी ज़मीं नहीं थी॥
देख सकता तेरे दिल में किसी गैर कि सूरत ...
मेरी आँखों में ऐसी रोशनी नहीं थी॥
कह न पाया हो उनसे कोई बात आँखों-आँखों में...
ऐसी कोई बात मेरे दिल में रही नहीं थी ॥
दबा रक्खा था बोझ कितना अपनी हसरतों का मैंने...
ये न कहना की ख़त में ये बात लिक्खी नहीं थी॥
कैसी किस्मत है की लौट आया हूँ उस मोड़ से मैं...
सामने मंजिल थी..और कोई राह बची नहीं थी॥
Beparwah..
आपका ब्लाग अनोखा है,
ReplyDeleteबधाइयां स्वीकारिये अपके ब्लाग से एक तस्वीर का प्रयोग किया है http://voi-2.blogspot.com/2010/05/blog-post_31.html कृपया सहमति असहमत से अवगत कराइये
सादर
आपका ही मुकुल